गुजरात में उल्लू के आँख का प्रयोग लोग भोजन के रूप में करते हैं। ऐसी मान्यता है कि उल्लू की आँखें खाने से आँखों की रौशनी बढ़ती है। इसकी गुर्दा भी ऊँचे दाम पर बिकती है। वहीं उनके पैर और माँस का प्रयोग भोजन के साथ दवा के रूप में किया जाता है। विदेशों में उल्लू के पैर और पंख की काफी माँग है।
विशेषज्ञों की राय में उल्लू के माँस और पैर से कोई दवा नहीं बनता बल्कि ये अल्प जानकारी एवं सुनी-सुनाई रूढ़ीवादी बातें हैं, जिससे अल्पसंख्यक उल्लू प्रजाति के पक्षियों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। मध्य प्रदेश में कई जानवरों के चमड़े एवं चर्वी से दवा बनायी जाती है लेकिन इसके विश्लेशण की अभी आवश्यकता है। इन सब भ्रांतियों की वजह से गुजरात एवं मध्यप्रदेश उल्लू के अंगो का बाजार बन गया है, जबकि झारखण्ड और बिहार से उल्लूओं का सफाया हो रहा है। ये वेजुबान एवं संकटापन्न प्राणी, विलुप्प्ति के कगार पर इन अन्धविश्वासों के चलते पहुँच गये हैं।
वन विभाग का ध्यान उल्लूओं की लगातार हो रही कमी की ओर गया है तथा इनके संरक्षण की कारवाई शुरू हो गयी है। वहीं केन्द्र सरकार ने भी इस ओर पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु एक दिशा निर्दश राज्य सरकारों को भेजी हैं। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने सभी राज्यों को उल्लूओं की गणना कर उनके संरक्षण के लिए उपाय करने का निर्देश दिया है।
अतः हम कह सकते हैं कि अज्ञानता एवं रूढ़ीवादी विचार के वाहक कुछेक लाभुक लोग आम जनता के बीच उल्लू के अंगों के बारे भ्रांतियाँ फैलाकर जहाँ अपने धनोपार्यन का साधन बना लिया है, वहीं इस प्रजाति के जीवन को समाप्त करने का जुगाड़ कर दिया है। एक ओर इस प्राणी के इस धरती से विदाई की तैयारी कर दिया है, जिसका परिणाम ये होगा कि पर्यावरणीय असंतुलन पैदा होगा, वहीं आनेवाली पीढ़ी उल्लू को किताबों के पन्ने पर सिर्फ चित्र के रूप में देखेंगे। इसे रोकना हमारी भी जिम्मेवारी इस सामाजिक व्यवस्था में बनती है, इसपर गौर किया जाना चाहिए एवं इस रूढ़ी को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
विशेषज्ञों की राय में उल्लू के माँस और पैर से कोई दवा नहीं बनता बल्कि ये अल्प जानकारी एवं सुनी-सुनाई रूढ़ीवादी बातें हैं, जिससे अल्पसंख्यक उल्लू प्रजाति के पक्षियों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। मध्य प्रदेश में कई जानवरों के चमड़े एवं चर्वी से दवा बनायी जाती है लेकिन इसके विश्लेशण की अभी आवश्यकता है। इन सब भ्रांतियों की वजह से गुजरात एवं मध्यप्रदेश उल्लू के अंगो का बाजार बन गया है, जबकि झारखण्ड और बिहार से उल्लूओं का सफाया हो रहा है। ये वेजुबान एवं संकटापन्न प्राणी, विलुप्प्ति के कगार पर इन अन्धविश्वासों के चलते पहुँच गये हैं।
वन विभाग का ध्यान उल्लूओं की लगातार हो रही कमी की ओर गया है तथा इनके संरक्षण की कारवाई शुरू हो गयी है। वहीं केन्द्र सरकार ने भी इस ओर पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु एक दिशा निर्दश राज्य सरकारों को भेजी हैं। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने सभी राज्यों को उल्लूओं की गणना कर उनके संरक्षण के लिए उपाय करने का निर्देश दिया है।
अतः हम कह सकते हैं कि अज्ञानता एवं रूढ़ीवादी विचार के वाहक कुछेक लाभुक लोग आम जनता के बीच उल्लू के अंगों के बारे भ्रांतियाँ फैलाकर जहाँ अपने धनोपार्यन का साधन बना लिया है, वहीं इस प्रजाति के जीवन को समाप्त करने का जुगाड़ कर दिया है। एक ओर इस प्राणी के इस धरती से विदाई की तैयारी कर दिया है, जिसका परिणाम ये होगा कि पर्यावरणीय असंतुलन पैदा होगा, वहीं आनेवाली पीढ़ी उल्लू को किताबों के पन्ने पर सिर्फ चित्र के रूप में देखेंगे। इसे रोकना हमारी भी जिम्मेवारी इस सामाजिक व्यवस्था में बनती है, इसपर गौर किया जाना चाहिए एवं इस रूढ़ी को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
19 पाठक टिप्पणी के लिए यहाँ क्लिक किया, आप करेंगे?:
यह सच है कि उल्लू के बारे में लोगों में अन्धविश्वास है। इसी लिये बे-कारण उल्लू मारे जा रहे हैं। यह चिन्ता का विषय है।
अपनी आँखों की ज्योति या छोटी मोटे कष्टों के निवारण के लिए किसी प्रजाति को खत्म कर देना कहाँ तक उचित है ? यह स्वार्थ की पराकाष्ठा है। कतर्क को कुतर्क से ही काटा जा सकता है। क्यों न यह भ्रान्ति फैलाई जाए कि उल्लू की आँख खाने से दिन में दिखाई देना बंद हो जाता है। उसे खाने से मस्तिष्क कमजोर हो जाता है। मनुष्य की बुद्धि उल्लू जैसी (जबकि उल्लू निश्चित तौर पर मनुष्य से बेहतर ही होता होगा)हो जाती है आदि आदि।
घुघूती बासूती
वाकई लोग कब अंधविश्वास को छोडेंगे ...वाकई चिंता का विषय है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
अगर आप वास्तव में उल्लुओं का हित चाहते हैं तो बेहतर होगा कि इस सम्बन्ध में जिन अन्धविश्वासों का आपने जिक्र किया है उनका जिक्र अपने पोस्ट से तुरंत हटा दें. क्योंकि संवेदना की सीख कम लोग लेते हैं, लेकिन अपने क्षुद्र स्वार्थ की पूर्ति के लिए निरीह प्राणियों की जान लेने के लिए अधिकतम लोग तत्पर हैं. आप यह जानकारी उन्हें भी दे रहे हैं जो पहले से यह बातें नहीं जानते हैं. इसे पढ़ कर बहुत सारे लोग यह जान जाएंगे और ऐसी बेवकूफी करने की ओर बढ़ चलेंगे. याद रखें, अन्धविश्वास महामारी और भ्रष्टाचार की तरह बढ़ता है.
मैंने पढ़ा कि उल्लू कि आंख खाने से आँख कि रोशनी तेज होती है
पर मैंने ये भी सुना है कि खाने से आदमियों का दिमाग भी उल्लूओ
सरीखा हो जाता है ........पर सच क्या है मै तो नहीं कह सकता हूँ
पर हिंसा का तरीका अपनाकर अपना हित करना उचित नहीं है और
वन्य जीव सरंक्षण योगना को ठेंगा बताना ही हुआ ..वैसे ही देश में
उल्लूओ की संख्या में दिनोदिन गिरावट आ रही है . धन्यवाद...
भई जो व्यक्ति ये सोचता है कि उल्लू की आंख खाने से आंखों की रोशनी बढती है,मेरे विचार से तो वो व्यक्ति इन्सान की बजाए कोई उल्लू का पट्ठा ही होगा......
इष्ट देव सांकृत्यायन जी,
आपकी चिंता वन्य प्राणियों के सुरक्षा प्रति है, इस तरह की सोंच रखने से मुझे सुकून मिला। आप इस बात से सहमत होंगे कि अशिक्षा कहीं न कहीं हमें गलत कार्य करने को प्रेरित करता है। गंदगी की सफाई की आवश्यकता होती है, न की इसे छिपा देने की। मेरा प्रयास लोगो को शिक्षित करना एवं मिथ्यामति को उजाकर कर सही स्थिति समाज के सामने रखने मात्र से है।
उल्लू रात में निकलता है और इंसान की दिनचर्या सूरज की किरणों के इर्द-गिर्द घूमती है । किस तरह एक दूसरे के लिए फ़ायदेमंद हो सकते हैं समझ से परे हैं । इष्ट देव सांकृत्यायन जी ने एकदम सही मुद्दा उठाया है । अँधविश्वासियों के जमघट में कोई भी बात बड़ी ही सावधानी के साथ कहना चाहिए । यहाँ तो फ़फ़ूँद को चमत्कारी रोटी और दीवार पर आई सीलन को भगवान का वरदान साबित करने वालों की कमी नहीं ।
अजब गजब भ्रांतियां फैली होती है लोगों के दिमाग में ... चिंता की बात है।
लोग भी कैसे कैसे विश्वास पाल लेते हैं बेचारे निर्दोष पशु पक्षी इनके शिकार बनते हैं
भारत देश महान यहां पर कुछ भी संभव है । कुछ भी मानने और करने को लोग तैयार है । वैसे ये प्रजाति अगर खत्म हो गयी तब भी उल्लू खत्म नहीं होगें अभी बहुत हैं ।
ऐसे ही अनेक अन्धविस्वासों ने वन्यजीवों का सत्यानाश कर दिया ! शुक्रिया !
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि
उल्लुओं के संरक्षण की कार्रवाई शुरू हो गई है!
wakai kuchh chutiyo ne sara santulan hi bigad diya he.......
every stepshese should be taken to let them live
maa laxmi ka vaahan bahut hi nirparadh pakshi h. kripya aisa sandesh de k pakshiyon ki hinsa band ho.
EMI in Hindi
ISO Full Form
Leopard in Hindi
IRDA Full Form
NTPC Full Form
Mars in Hindi
Computer Ka Avishkar Kisne Kiya
Mobile Ka Aviskar Kisne Kiya
Tv Ka Avishkar Kisne Kiyai
Leopard in Hindi
Titanic Jahaj
Cat in Hindi
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