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शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

घरेलू बिल्लियों के साथ भी प्रजनन देखा गया है

रंग पीला और उसपर लाईन में छोटी-छोटी काली-भूरी आकृतियाँ बनी होती है। रात्रिचर हैं और दिन में बड़े वृक्षों के खोखले भाग (खोह) में अथवा डालों के बीच विश्राम करते हैं। शाम होते हीं अपने आहार के लिए सक्रिय हो जाते हैं। छोटे पक्षी चूहे आदि इनके आहार हैं। कई क्षेत्रों में ये मुर्गीपालन को काफी क्षति पहूँचाते हैं। घरेलू बिल्ली जैसा आकार होता है और इन्हें “चीता-बिल्ली” के नाम से जाना जाता है। घरेलू बिल्लियों के साथ इनका प्रजनन देखा गया है। चीता-बिल्ली के पालतू बनने का दृष्टांत भी है।
नाम : चीता बिल्ली
अंग्रेजी नाम : (Leopard Cat)
वैज्ञानिक नाम : (Felis bengalensis)
विस्तार : पूरा भारत तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के उत्तरी भाग।
आकार : सिर से शरीर करीब 60 से0मी0 तथा पूँछ 60 से0मी0 लम्बा।
वजन : तीन से चार किलोग्राम।
चिडियाघर में आहार : चिकेन और दूध
प्रजनन काल : पूरा वर्ष।
प्रजनन हेतू परिपक्वता : 11 माह।
गर्भकाल : 61 दिन।
प्रतिगर्भ प्रजनित शिशु की संख्या : तीन से चार ।
जीवन काल : करीब 15 वर्ष ।
प्राकृति कार्य : प्रजनन द्वारा अपनी प्रजाति का अस्तित्व कायम रखना, चूहों तथा पक्षियों की संख्या पर प्राकृतिक नियंत्रण में सहायता करना आदि।
प्रकृति में संरक्षण स्थिति : संकटापन्न (Endangered) ।
कारण : अविवेकपूर्ण मानवीय गतिविधियों (यथा वनों की अत्यधिक कटाई, चराई, वनभूमि का अन्य प्रयोजन हेतु उपयोग) के कारण इनके प्राकृतवास (Habitat) का सिमटना एवं उसमें गुणात्मक ह्रास (यथा आहार, जल एवं शांत आश्रय-स्थल कि कमी होना), घरेलू पालतू पक्षियों को क्षति के कारण इनकी हत्या आदि।
वैधानिक संरक्षण दर्जा : अति संरक्षित, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची – I में शामिल।

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

जंगली हाथियों से अगर आपका सामना हो जाय तो क्या करेंगें आप?

जंगली हाथी अगर अपने प्राकृतवास में है तो यह उनकी सामान्य गतिविधियाँ हैं लेकिन अगर वह अपने प्राकृतवास से बाहर आ जाए और आपसे उनकी मुठभेड़ हो जाए तो क्या आपने कभी सोंचा है कि तत्काल क्या कदम उठाने चाहिए? आपकी इस व्याकुलता को शांत करेगा वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, झारखण्ड सरकार के वनविदों के शोध पर आधारित संकलित आम जन के लिए जारी दिशा-निर्देश, जो आपकी उलझन को सुलझायेगा।
जंगली हाथियों से सुरक्षा के लिए क्या करें:-
[1] हाथी द्वारा कान खड़े कर, सूँढ़ ऊपर उठाकर आवाज देना इस बात का संकेत है कि वह आप पर हमला करने जा रहा है। अतः तत्काल सुरक्षित स्थान पर चलें जायें।
[2] हाथी से यदि सामना हो जाये तो तुरन्त उसके लिए रास्ता छोड़ें। पहाड़ी स्थानों में सामना होने की स्थिती में पहाड़ी की ढ़लान की ओर दौड़ें। कुछ दूर दौड़ने पर गमछा, पगड़ी, टोपी अथवा कोई वस्त्र फेंक दें ताकि कुछ समय तक हाथी उसमें उलझा रहे और आपको सुरक्षित स्थान में पहुँचने का मौका मिल जाए।
[3] अगर हाथी रात में या दिन में गाँव में आ जाता है तो मशाल के साथ कम-से-कम दस लोग एक साथ मिलकर ढ़ोल या टीना पीटकर हाथी को भगाने का प्रयास करें। इस प्रक्रिया में भी हाथी के बहुत नजदीक न जायें। हाथी-प्रभावित क्षेत्रों के गाँवों में रात्रि में दल बनाकर मशाल के साथ पहरा दें।
[4] अगर मचान बनाकर खेत की रखवाली करनी हो, तो मचान ऊँचा बनावें, विशेष कर उसे ऊँचे, मजबूत पेड़ के ऊपर बनायें और उसके नीचे जमीन पर लकड़ी से आग जलायें रखें।
जंगली हाथियों से सुरक्षा के लिए क्या न करें:-
[1] हाथी के चारो ओर कौतूहलवश भीड़ न लगायें। हाथियों की चलने/दौड़ने की गति 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटे हो सकती है। अतः हाथी से कम से कम 300 गज की दूरी बनाये रखें। बच्चों, महिलाओं एवं वृद्धों को कभी भी हाथी के समक्ष नहीं जाने दें।
[2] हाथियों को छेड़े नहीं; विशेष कर उन पर पत्थर, तीर, जलता हुआ टायर आदि फेंक कर प्रहार न करें। जख्मी होने पर हाथी उग्र रूप धारण कर जन और धन को क्षति पहुँचा सकते हैं।
[3] हाथियों को अनाज अथवा अन्य कोई खाद्य सामग्री न दें, क्योंकि इससे उनकी खाद्य सामग्री के प्रति रूचि बढ़ेगी एवं इस कारण वे मकानों को तोड़कर खाद्य सामग्री प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हैं।
[4] हाथी को देखकर पूजा या प्रणाम करने के उद्देश्य से भी उनके पास नहीं जायें।
[5] हाथी जिस जंगल में हों उस क्षेत्र में चारा, जलावन एकत्र करने नहीं जाएं।

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

“काफी भाग-दौड़ तथा नर द्वारा मादा का पीछा करने के बाद समागम होता है” – गैंड़ों में

नर गैंड़ा करीब सात साल की उम्र में और मादा करीब चार साल की उम्र में प्रजनन योग्य होते हैं। प्रजनन के लिए कोई निर्धारित काल नहीं होता है और आमतौर पर काफी भाग-दौड़ तथा नर द्वारा मादा का पीछा करने के बाद समागम होता है। इनकी भाग-दौड़ देखकर अचम्भीत हो गयेंगे कि आखीर इतनी तुफानी दौड़ किस चीज के लिए हो रही है। कुछ देर बाद अचानक शांति होती है एवं समागम होता है। करीब 16 माह के गर्भकाल के बाद मादा लगभग एक मीटर लम्बा और 60 किलोग्राम वजन के शिशु को जन्म देती है। बंदी अवस्था में इनका जीवन-काल करीब 47 वर्ष तक पाया गया है।
आदतन गैंड़ा एक ही स्थान पर कई दिनों तक मल-मूत्र त्याग करता है जहाँ थोड़े ही दिनों में मल का ढ़ेर लग जाता है। ऐसा कर वे अपना वास-क्षेत्र चिन्हित करते हैं, परंतु इसी स्वभाव के कारण शिकारी मल-त्याग के स्थलों पर इनके आने का इंतजार करते हैं और आसानी से इनका शिकार कर लेते हैं। मूलतः शिकार इनके सिंग के लिए होता है जिसके बारे में ये अन्धविश्वास है कि इसमें काम-शक्ति बढ़ाने की तथा अन्य औषधीय शक्ति है। प्राचीन काल में इसके चमड़ा से योद्धाओं के लिए ढ़ाल बनाया जाता था।
ये विशालकाय और भारी-भरकम होते हैं तथा इनकी हड्डियाँ अत्यंत मजबूत होती हैं। इनकी टाँगे गोल-मटोल होती हैं जिन पर तीन खुर होटल हैं जो इनकी विशेष पहचान है। इनका चमड़ा अत्यन्त मोटा और कम बालों वाला होता है जिसमें पर गट्टा जैसा तह (Folds) बने रहने के कारण यह कवच की तरह लगता है। इसकी नाक की हड्डियाँ लम्बी होती है जिसपर तथाकथित सिंग अवलम्बित रहता है। वस्तुतः इनका सिंग कड़े रेशों अर्थात बालों का अन्तरंगीकृत समूह है।
इन्हें दलदली घास का मैदान पसन्द है, परन्तु ये नदी- नालावाले पहाड़ी जंगलों में भी रहते हैं। घास इनका मुख्य आहार है। कीचड़-पानी मे6 बैठकर ये अपना तापमान नियंत्रित करते है।
इनका उदभव कम से कम सात करोड़ वर्ष पूर्व यूरोप-एशिया में हीं हुआ। एशिया में विद्यमान अन्य दो प्राजातियों, दो सींगवाला गैंड़ा तथा एक-सींगवाला छोटा गैंड़ा, से एक सींगवाला भारतीय गैंड़ा बड़ा होता है। एशियाई गैंड़ा की प्रजातियाँ अफ्रीकी गैंड़ा की प्रजातियों से भिन्न है।
भारतीय गैंड़ा (Indian Rhinoceros)
वैज्ञानिक नाम : (Rhinoceros unicornis)
विस्तार :
असम, पश्चिम बंगाल तथा नेपाल से सटे उत्तर प्रदेश के वनों में।
आकार : उँचाई 1.70 मी0 लगभग, स्कन्ध के पीछे की गोलाई 3.35 मी0 लगभग।
वजन : दो से चार मेट्रिक टन।
चिडियाघर में आहार : फुलाया चना और उरद, गेहूँ चोकर, नमक, केला तथा हरा घास।
प्रजनन काल : पूरा वर्ष।
प्रजनन हेतू परिपक्वता : नर – सात वर्ष, मादा - चार वर्ष।
गर्भकाल : 16 माह।
प्रतिगर्भ प्रजनित शिशु की संख्या : एक; औसत लम्बाई 1.05 मी0 तथा वजन करीब 60 किलोग्राम।
जीवन काल : करीब 47 वर्ष बंदी अवस्था (कैप्टीविटी) में।
प्राकृति कार्य : प्रजनन द्वारा अपनी प्रजाति का अस्तित्व कायम रखना तथा वनस्पतियों की यथास्थिति तथा उत्पादकता बनाये रखना आदि।
प्रकृति में संरक्षण स्थिति : संकटापन्न (Endangered);
कारण : अविवेकपूर्ण मानवीय गतिविधियों (यथा वनों की अत्यधिक कटाई, चराई, वनभूमि का अन्य प्रयोजन हेतु उपयोग) के कारण इनके प्राकृतवास (Habitat) का सिमटना एवं उसमें गुणात्मक ह्रास (यथा आहार,जल एवं शांत आश्रय-स्थल कि कमी होना), सींग के लिए हत्या आदि।
वैधानिक संरक्षण दर्जा : अति संरक्षित, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची - १ में शामिल।
भारत में विद्यमान गैंड़ा की इस एकमात्र प्राजाति का अस्तित्व भी दुनिया के अन्य गैंड़ों की तरह हीं अवैध शिकार के कारण संकट में है। भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत इस प्राकृतिक धरोहर का पूर्णरूप से संरक्षित प्रजाति का दर्जा प्राप्त है तथा इसका शिकार करने अथवा इसके किसी अवयव को रखने या व्यापार करने के अपराध के लिए कठोर दण्ड का प्रावधान है, परन्तु जन-चेतना तथा सक्रियता के अभाव में इसे वास्तविक पूर्ण संरक्षण अभी तक नहीं मिल पाया है और इनकी संख्या घटकर अब करीब 2100 रह गयी है।

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