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रविवार, 3 मई 2009

4 मई को वन्यजीवों के जीवन से होली खेली जायेगी

जी, हाँ होली रंगो का त्योहार है तथा इसके आगमन पर असीम खुशियाँ भी साथ आती है, लेकिन कल जो होली खेली जायेगी वो खून की होली होगी, जिसमें वन्य जीवों का खून साधन होगा जबकि साधक जानवरों में विकसित दिमाग के धनी मानव समाज होगा।
मैं आपको ज्यादा देर अँधेरे में रखना नहीं चाहता। मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि कल 04-05-2006 को दलमा वन्य प्राणी आश्रायणी, जमशेदपुर में चार राज्यों, झारखंड, बिहार, बंगाल और उड़िसा के आदिवासी समाज के लोग विशु शिकार का आयोजन किया है। इसमें चारो राज्यों के हजारो शिकारी, समूह में दलमा पहाड़ी की चढ़ाई आज से हीं शुरू कर दी है। कल इस वन्य प्राणी आश्रयणी को चारो ओर से घेर कर सामुहिक शिकार किया जायेगा, जिसमें अनेकों प्रजाति के वन्य जंतुओं का जीवन समाप्त होगा। दलमा में इस पुरानी सामाजिक व्यवस्था की बलि-वेदी पर वन्य जंतुओं की आहुति प्रतिवर्ष एक नियत तिथि को देकर विशु पर्व मनाया जाता है।
कैसे किये जाते हैं वन्य जंतूओं के शिकार:
1.
हाका विधिः इस विधि द्वारा सैकड़ो की संख्या में शिकारी एक बड़े वन्य क्षेत्र को चिन्हित कर तीन दिशाओं से मानवरूपी दीवार से घेराबन्दी कर आवाज लगाते हुए आगे बढ़ते हैं जबकि एक ओर खुला रहता है, जिधर; शिकारी हथियार के साथ छिप कर बैठे होते हैं। सामुहिक शोर से वन्य जंतु विचलित होकर शांत इलाके की ओर भागते हैं तथा छिपे शिकारियों के हत्थे चढ़ जाते हैं।
2. कृतिम दावाग्नि विधिः इसमें शिकारी वन्य जंतु बहुल क्षेत्रों में तीन दिशाओं से आग लगा देते हैं जबकि एक ओर खुला रहता है, खुले भाग में शिकारी हथियार के साथ छिप कर बैठे होते हैं। जैसे हीं वन्य जंतु जान बचाने के फिराक में उस ओर भागते हैं, उन्हें अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता है।
3. जल श्रोतों के पास शिकारः इसमें शिकारी जलश्रोतों के पास छिपकर घात लगा कर बैठे होते हैं और जैसे हीं कोई जंतु पानी पीने आता है उसे मार दिया जाता है।
विशु शिकार रोकने का विभागीय प्रयासः
1.
प्रशासानिक तैयारी के रूप में वन विभाग के उच्चाधिकारियों ने बड़ी संख्या में वनकमियों की प्रतिनियुक्ति दलमा में की है ताकि आश्रयणी क्षेत्र में त्वारित एवं निरंतर गस्ती होती रहे तथा वन्य जंतुओं को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा दी जा सके। दूसरी ओर वरीय पदाधिकारी वहीं कैम्प किये हुए हैं एवं जिला प्रशासन की मदद से इस विशु शिकार को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं।
2. एक सप्ताह पहले से हीं वन्य प्राणी प्रमंडल, राँची के वन प्रमंडल पदाधिकारी श्री सिद्धार्थ त्रिपाठी दलमा का निरंतर दौरा कर इको विकास समितिओं, आश्रयणी के आस-पास आवासित ग्रामिणों तथा सेंदरा समितियों के साथ बैठक कर रहे हैं ताकि विशु पर्व पर सांकेतिक शिकार हो। एक बैठक इको विकास समिति के सदस्य श्री रामदास सोरेन के साथ हुई, जिन्होने सांकेतिक शिकार के मुद्दे पर कहा कि समाज के अन्य लोगों से बात करनी होगी, उसके बाद इसपर अंतिम निर्णय लिया जायेगा। इस बैठक में सेंदरा समिति के सदस्य भी उपस्थित थे।
सरकार की कोशिश: राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है, अतः महामहिम राज्यपाल महोदय को हीं जनता से सम्वाद को आगे आना पड़ा एवं उन्होने आम जनता से विशु शिकार से परहेज की अपील जारी की है। अपने अपील में महामहिम ने रूढ़ीवादी व्यवस्था को छोड़ने एवं अपने गोत्रो की सुरक्षा की अपील जारी की है।इतने प्रयासों के बाद भी 4 मई को दलमा में वन्य जंतुओं के जीवन की होली खेली जायेगी, ये निश्चित है, क्योंकि उपरोक्त प्रयास प्रतिवर्ष के हैं एवं कम से कम मैं बीस वर्षो से इस कवायद को देखता आ रहा हूँ। रूढ़ीवादी व्यवस्था, सांस्कृतिक परम्परा एवं पर्व के नाम पर वन्य जंतुओं की हत्या जारी रहेगी। वन्य जंतुओं की हत्या के लिए बने कड़े कानूनी प्रावधान कानून की किताबों में बन्द रहेंगे। आदिवासी समाज की रक्षा एवं संरक्षण देने के नाम पर सरकारें उनको पितृत्व प्यार देती रहेंगी जबकि वन्य जंतुओं की सामुहिक हत्या होती रहेंगी क्योंकि ये पशु वोट (Vote) जो नहीं दे सकते!
इटकी व बेड़ो क्षेत्र में भी विशु शिकार की धमक:
इटकी एवं बेड़ो क्षेत्र के सीमावर्ती जंगलों में परम्परागत रूप से दो दिवसीय विशु शिकार पिछ्ले सप्ताह खेला गया। ढ़ोल-नगाड़ा, रणभेरी, झंडा एवं पारम्परिक हरवे-हथियार से लैस 21 पहड़ा पश्चिमी, 12 पहड़ा बेड़ो, 10 पहड़ा कटरमी, 5 पहड़ा गड़गाँव से सम्बन्धित सैकड़ों लोगों ने जानवरों को खदेड़ कर शिकार किया। शिकार खेलने के बाद लोगों ने नदी पहुँच कर अपने पुरखों के नाम पर सामूहिक रूप से सत्तु उड़ाने की रश्म पुरी की। विशु शिकार में पूर्व विधायक विश्वनाथ भगत, गोविन्द भगत, पहड़ा राजा, दिवान, कोटवार, पइनभारा सहित भारी संख्या में लोग शामिल थे जबकि वन विभाग कुम्भकरणी नींद में सोयी रही और इस मामले पर कोई करवाई नहीं हुई।

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