* जंगल से ग्रामीणों के लगाव एवं जंगलवासियों की मार्मिक व्यथा देखने के लिए पधारें- http://premsagarsingh.blogspot.com ~ (कहानी जंगल की) पर. * * * * * * वनपथ की घटना /दुर्घटना के लिए पधारें- http://vanpath.blogspot.com ~ (वनपथ) पर.

गुरुवार, 5 मार्च 2009

टस्क वाले को “टस्कर” जबकि अन्य “मकना” : माँ के गर्भ में रहता है 22 माह

एशियाई हाथी का आकार कुछ छोटा, कान काफी छोटे, पैरों में तीन नाखुन के स्थान पर चार नाखुन तथा सूँढ़ के अंत में दो होठ के स्थान पर केवल एक ऊपरी होठ ही रहता है। एशियाई हाथियों में कुछ नरों के ऊपरी जबड़ा के इनसाइजर का दूसरा जोड़ा बढ़ कर काफी बड़ा हो जाता है और बाहर निकले इन दाँतों को “टस्क” कहते हैं। टस्कवाले नर हाथियों को “टस्कर” कहते हैं जबकि वैसे नर जिनका यह दाँत बढ़ कर बाहर नहीं निकलता है उन्हें “मकना” कहते हैं। मकना हाथियों का सूँढ़ ज्यादा मजबूत होता है। सूँढ़ वस्तुतः हाथी के ऊपरी होठ और नाक का समेकित, परिवर्तित रूप है तथा हाथी के लिए यह एक अपरिहार्य अंग है जो किसी चीज को पकड़ने, साँस लेने, सूँघने एवं खाने-पीने तथा पानी और धूल का स्नान कराने के अंग के रूप में कार्य करता है। अफ्रीकी हाथियों में नर तथा मादा दोनो के टस्क हो सकते हैं। हाथियों में गर्भ काल काफी लम्बा होत है। ये करीब 20-22 माह बाद शिशु को जन्म देते है जो इनकी विशिष्टता है।
हाथी पृथ्वी का सबसे बड़ा जमीनी जानवर है जिसके कन्धे की ऊँचाई तीन मीटर से कुछ अधिक तक हो सकती है। विश्व में इनकी दो प्रजातियाँ विद्यामान है, एशियाई एवं अफ्रीकी। हाथी आमतौर पर कुछ से दर्जनों के समूह में रहते हैं तथा भोजन और पानी की खोज में भ्रमणशील रह्ते हैं। घास,पत्ते, डालियाँ, जड़ आदि इनके आहार हैं तथा एक हाथी एक दिन में करीब 150 किलोग्राम तक आहार ले सकता है। हाथी दाँत के लिए अवैध शिकार के कारण टस्करों की संख्या अत्यंत कम हो गयी है। विगत दो-तीन दशकों में झारखण्ड में इनकी संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है जबकि इनके प्राकृतवास में गुणात्मक ह्रास हुआ है तथा जंगलों में इनके आहार एवं जल की कमी हो गई है जिसकी तलाश में इनके झुण्ड जंगल से बाहर निकल रहे हैं तथा मानव-हीत से टकराव हो रहा है।
नाम : एशियाई हाथी
अंग्रेजी नाम : Asiatic Elephant
वैज्ञानिक नाम : Elephas maximus
आकार : नर- 3.00-२.50 मी०, मादा- करीब २.7५-2.15 मी०।
वजन : तीन से पाँच मेट्रिक टन ।
चिडियाघर में आहार : फुलाया चावल, मसूर और चना, गुड़, नमक, केला, हरा घास और ताजा पत्ते तथा छाल आदि।
प्रजनन काल : बरसात का उत्तरार्द्ध और पहला शुष्क माह।
प्रजनन हेतू परिपक्वता : 15-18 वर्ष।
गर्भकाल : 20-22 माह ।
प्रतिगर्भ प्रजनित शिशु की संख्या : एक
जीवन काल : करीब 80 वर्ष बंदी अवस्था में
प्राकृति कार्य : प्रजनन द्वारा अपनी प्रजाति का अस्तित्व कायम रखना, वनस्पतियों की यथास्थिति तथा उत्पादकता बनाए रखना, शिशु हाथियों का बड़े परभक्षियों के लिए आपात्कालिक आहार होना आदि।
प्रकृति में संरक्षण स्थिति : संकटापन्न (Endangered)।
कारण : अविवेकपूर्ण मानवीय गतिविधियों (यथा वनों की अत्यधिक कटाई, चराई, वनभूमि का अन्य प्रयोजन हेतु उपयोग) के कारण इनके प्राकृतवास (Habitat) का सिमटना एवं उसमें गुणात्मक ह्रास (यथा आहार,जल एवं शांत आश्रय-स्थल कि कमी होना), आहार-जल की तलाश में बाहर निकलने पर मानव-हीत से टकराव (यथा जान-माल की क्षति) के कारण हत्या, हाथी दाँत के लिए टस्करों की हत्या आदि।
वैधानिक संरक्षण दर्जा : अति संरक्षित, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची - I में शामिल
राँचीहल्ला के ब्लॉगर आदरणीय नदीम अख्तर जी ने मेरे लेख- “घरेलू बिल्लियों के साथ भी प्रजनन देखा गया है” पर टिप्पणी के माध्यम से हाथी पर जानकारी चाही थी। उक्त लेख के साथ एक और लेख (जल्द ही-“वन्य गज : कभी मेहमान कभी परदेशी”) श्री नदीम अख्तर को समर्पित है ।

7 पाठक टिप्पणी के लिए यहाँ क्लिक किया, आप करेंगे?:

Shikha Deepak ने कहा…

बढ़िया जानकारी। मैंने पढ़ा है कि हाथियों कि स्मरण शक्ति बहुत तेज होती है और इनके समूह की मुखिया मादा हाथी होती है।

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

ज्ञानवर्धक जानकारी से परिपूर्ण आलेख ,शुभकामनाएं !

नदीम अख़्तर ने कहा…

आदरणीय प्रेम स‌ागर जी, नमस्कार
मैं आपके प्रति कृतज्ञ हूं, जो आपने इतनी अच्छी जानकारी उपलब्ध करायी। वैसे मैं इस विषय पर खुद भी कुछ लिखना चाहता हूं, इसलिए आपसे कुछ प्रश्नों का उत्तर चाहता हूं। अगर आप मुझे अपना नम्बर उपलब्ध करा दें, तो मैं आपसे बात करके इस विषय पर अपना एसाइनमेंट पूरा कर स‌कता हूं। एक बार पुनः आपका स‌ाधुवाद।
नदीम

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

आपके हर आलेख की तरह यह आलेख भी महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से आपके आलेख वन्य-प्राणियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देने के साथ-साथ उनके संरक्षण हेतु लोगों के मन में नई चेतना जाग्रत करेंगे।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रहता वन में,और हमारे,
संग-साथ भी रहता है।
यह गजराज तस्करों के,
जालिम-जुल्मों को सहता है।।

समझदार हैं, सीधे भी हैं, काम हमारे यह आते हैं,
सरकस के कोड़े खाकर, नूतन करतब दिखलाते हैं।
वन्य जीव जितने भी हैं, सबके अस्तित्व बचाने हैं,
वन्य जगत देख की दुर्दशा, सीने फटते जाते हैं।।

Science Bloggers Association ने कहा…

बहुत ही ज्ञानवर्द्धन हुआ आपके ब्‍लॉग पर आकर। हार्दिक बधाईयॉं।

Sunita ने कहा…

Nice

एक टिप्पणी भेजें

आप टिप्पणी नीचे बॉक्स में दिजिए न|साथ हीं आप नियमित पाठक बनिए न ताकि मैं आपके लिंक से आपके ब्लोग पर जा सकूँ।

लेख शीर्षक [All Post]