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बुधवार, 26 मई 2010

अचानक आक्रमण कर शिकार का गला अपने मुँह से पकड़ कर मारते हैं

इनका रंग पीला-भूरा होता है जिस पर छोटे, काले पुष्पाकृति की छापें बनी रहती हैं। दिन में ये गिरे –पड़े वृक्षों के नीचे या कन्दराओं में बनी माँद अथवा वृक्ष के ऊपर विश्राम करते हैं तथा शाम होते ही अपने आहार के लिए सक्रिय हो जाते हैं। बिल्ली प्रजाति के बड़े जानवरों में सर्वाधिक विस्तारवाला तेन्दुआ जंगलों तथा घास के मैदान के अतिरिक्त रेगिस्तानी क्षेत्र में भी पाये जाते हैं। आमतौर पर तेंदुआ अकेले विचरण करता है, परंतु प्रजनन के लिए जोड़ा बनाता है। छोटे आकार के हिरण, मवेशी तथा अन्य पशु इनके आहार हैं। वृक्ष पर चढ़ने में ये दक्ष होते हैं और कभी-कभी वृक्ष से छलांग लगाकर नीचे से जा रहे शिकार को धर-दबोचते हैं। आमतौर पर अचानक आक्रमण कर शिकार का गला अपने मुँह से पकड़ कर मारते हैं । जंगलों पर वर्तमान में बढे हुए मानवीय दबाव की स्थिति में भी ये अपना अस्तित्व बचाये रखने में सर्वाधिक सफल है क्योंकि ये मानवीय आबादी के समीप वृक्षों पर भी रह सकते हैं जहाँ घरेलू पशु-पक्षी आहार के लिए आसानी से मिल जाते हैं।

विस्तार : पूरा भारत, श्रीलंका तथा अफ्रिका

हिन्दी नाम : तेन्दुआ

अंग्रेजी नाम : Leoparad, panther

वैज्ञानिक नाम : Panthera pardus

आकार : नर की औसत लम्बाई-2.15 मी० ( पुँछ सहीत) होती है जब कि मादा नर से 30 से. मी. छोटी होती है।

वजन : नर-65-70 किलोग्राम, मादा- 50-65 किलोग्राम

प्रजनन काल : पूरा वर्ष

गर्भकाल : 90-105 दिन

चिडियाघर में आहार : महिष माँस, चिकेन एवं दूध

प्रजनन हेतू परिपक्वता : ढ़ाई से चार वर्ष

प्रतिगर्भ प्रजनित शिशु की संख्या : दो (कभी-कभी तीन या चार)

जीवन काल : करीब २० वर्ष

प्राकृति कार्य : प्रजनन द्वारा अपनी प्रजाति का अस्तित्व कायम रखना, शाकभक्षी जानवरों की संख्या नियंत्रित कर वनस्पति एवं शाकाहारी जानवरों के बीच संतुलन बनाये रखना आदि.

प्रकृति में संरक्षण स्थिति : संकटापन्न (Endangered)

कारण : अविवेकपूर्ण मानवीय गतिविधियों (यथा वनों की अत्यधिक कटाई, चराई, वनभूमि का अन्य प्रयोजन हेतु उपयोग) के कारण इनके प्राकृतवास (Habitat) का सिमटना एवं उसमें गुणात्मक ह्रास (यथा आहार,जल एवं शांत आश्रय-स्थल कि कमी होना), शारीरिक अवयवों (यथा चमड़ा, हड्डी, नाखून आदि) के लिए तथा मानव-हित से टकराव (यथा मवेशियों को क्षति आदि) के कारण हत्या.

वैधानिक संरक्षण दर्जा : अति संरक्षित, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची - १ में शामिल.

शनिवार, 22 मई 2010

घड़ा का उपयोग प्रजनन काल में स्वर-अनुनादक के रूप में और समागम के लिए होता हैं

तेजी से बहते पानी में भी ये अच्छे तैराक हैं, परंतु जमीन पर पेट के सहारे चलते हैं। मादा नदी के किनारे बालू के घोंसलों में अंडे देती है, उन्हें सेती है तथा शिशुओं को अण्डों से निकलने में सहायता करती है और उसके बाद छिछले पानी में अपने मुँह में कोमलता से पकड़ कर ले जाती है और वहाँ भी परभक्षियों यथा बड़ा कछुआ, बड़ी मछली तथा चील आदि से उनकी रक्षा करती है। इसके शीर्ष पर कार्टिलेज की घडानुमा संरचना बनी होती है जिसके कारण इसका नाम “घडियाल” पड़ा है। नर में यह घड़ा बड़ा होता है जिसका उपयोग प्रजनन काल में स्वर-अनुनादक के रूप में और समागम के लिए होता है। घड़ियाल का थूथना पतला और लम्बा होता है। वयस्क घड़ियाल अपने शरीर के तापमान नियंत्रण के लिए नदी किनारे अथवा नदी के बीच टापूओं पर धूप सेंकते हैं। इनका मुख्य आहार मछली है।

उदभव : करोडों वर्ष पूर्व जब गर्भरक्तधारी पक्षियों तथा स्तनपायी जंतुओं का प्रादुभार्व नहीं हुआ था।

विस्तार : भारत के सिन्धु, गंगा, ब्रहमपुत्रऔर महानदी तथा इनकी सहायक नदियों में तथा म्यामांर के इरावदी तथा अराकान नदियों में।

हिन्दी नाम : घड़ियाल

अंग्रेजी नाम : Gharial

वैज्ञानिक नाम : Gavialis gangeticus

आकार : लम्बाई 6.75 मी0 तक

वजन : 150 किलोग्राम

चिडियाघर में आहार:जिन्दा मछली

प्रजनन काल : दिसम्बर-जनवरी
इंक्युबेशबन अवधि : 72-92 घंटा, 30-40 सेल्सियस तापमान पर

हैचलिंग : लम्बाई- 325-375 मि0मी0, वजन- 75-97 ग्राम
अण्डे की संख्या : कुछ से दर्जनों की संख्या में

जीवन काल : करीब 100 वर्ष

प्राकृतिक कार्य : प्रजनन द्वारा अपनी प्रजाति का अस्तित्व कायम रखना, मछलियों की संख्या नियंत्रित करना तथा नदियों की उत्पादकता बनाए रखना आदि।
प्रकृति में संरक्षण स्थिति : संकटापन्न (Endangered);
कारण : अविवेकपूर्ण मानवीय गतिविधियों (यथा नदियों में अत्यधिक घुसपैठ तथा विदोहन) के कारण इनके प्राकृतवास (Habitat) का सिमटना एवं उसमें गुणात्मक ह्रास (यथा आहार, जल एवं शांत आश्रय-स्थल कि कमी होना), चमड़ा के लिए शिकार तथा मानव-हित से टकराव (यथा जान-माल की क्षति आदि) के कारण हत्या.
वैधानिक संरक्षण दर्जा : अति संरक्षित, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची - १ में शामिल.

बुधवार, 19 मई 2010

घास और झाड़ी के सहारे चुपके-चुपके पहुँचते हैं और अचानक आक्रमण कर मार डालते हैं

इन्हें झाड़ीवाले पर्णपाती जंगल पसन्द हैं। ये समूह में रहते हैं और एक समूह में 10-20 जानवर हो सकते हैं जिसका नेतृत्व एक नर करता है। इनका आहार हिरण, जंगली सुअर तथा अन्य शाकभक्षी जानवर हैं। ये अपने शिकार के नजदीक तक घास और झाड़ी के सहारे चुपके-चुपके पहुँचते हैं और अचानक आक्रमण कर उन्हें मार डालते हैं। जानवरों का राजा कहा जानेवाला सिंह एक शक्तिशाली जानवर है। अफ्रिका में पाए जानेवाले सिंह एशियाई सिंह से कुछ भिन्न दिखते हैं। अफ्रिका सिंह का भरपूर केसर होता है तथा पूँछ के शीर्ष पर लम्बे काले बाल तथा पेट पर पर घने बाल होते हैं। अफ्रिकी और एशियाई सिंहों के बीच प्रजनन होता है और वर्णसंकर सिंह अधिकतर चिड़ियाघरों में प्रदर्श के रूप में रखे गए हैं।

विस्तार :  प्राचीन एवं मध्यकाल में ईरान तथा इराक सहित उत्तर एव6 मध्य भारत में नर्मदा नदी तक फैलाववाले एशियाई सिंह अब केवल गुजरात (कठियावाड़) के गीर के वनों में पाए जाते हैं।

हिन्दी नाम :  सिंह, बब्बर शेर

अंग्रेजी नाम :  Asiatic Lion

वैज्ञानिक नाम :  Panthera leo

आकार :  नर- २.७५-२.९० मी० लम्बा, पुँछ सहीत

वजन :  150-240 किलोग्राम

प्रजनन काल :  पूरा वर्ष

गर्भकाल :  116 दिन

चिडियाघर में आहार :  महिष माँस, चिकेन एवं दूध

प्रजनन हेतू परिपक्वता :  ढ़ाई से तीन वर्ष

प्रतिगर्भ प्रजनित शिशु की संख्या : एक से छ:

जीवन काल :  करीब २० वर्ष प्राकृतवास में, 24 वर्ष का जीवनकाल बंदी अवस्था में देखा गया है।

प्राकृति कार्य : प्रजनन द्वारा अपनी प्रजाति का अस्तित्व कायम रखना, शाकभक्षी जानवरों की संख्या नियंत्रित कर वनस्पति एवं शाकाहारी जानवरों के बीच संतुलन बनाये रखना आदि.

प्रकृति में संरक्षण स्थिति :  संकटापन्न (Endangered);

कारण : अविवेकपूर्ण मानवीय गतिविधियों (यथा वनों की अत्यधिक कटाई, चराई, वनभूमि का अन्य प्रयोजन हेतु उपयोग) के कारण इनके प्राकृतवास (Habitat) का सिमटना एवं उसमें गुणात्मक ह्रास (यथा आहार,जल एवं शांत आश्रय-स्थल कि कमी होना), शारीरिक अवयवों (यथा चमड़ा, हड्डी, नाखून आदि) के लिए तथा मानव-हित से टकराव (यथा मवेशियों को क्षति आदि) के कारण हत्या.

वैधानिक संरक्षण दर्जा : अति संरक्षित, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची - १ में शामिल.

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