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शनिवार, 22 मई 2010

घड़ा का उपयोग प्रजनन काल में स्वर-अनुनादक के रूप में और समागम के लिए होता हैं

तेजी से बहते पानी में भी ये अच्छे तैराक हैं, परंतु जमीन पर पेट के सहारे चलते हैं। मादा नदी के किनारे बालू के घोंसलों में अंडे देती है, उन्हें सेती है तथा शिशुओं को अण्डों से निकलने में सहायता करती है और उसके बाद छिछले पानी में अपने मुँह में कोमलता से पकड़ कर ले जाती है और वहाँ भी परभक्षियों यथा बड़ा कछुआ, बड़ी मछली तथा चील आदि से उनकी रक्षा करती है। इसके शीर्ष पर कार्टिलेज की घडानुमा संरचना बनी होती है जिसके कारण इसका नाम “घडियाल” पड़ा है। नर में यह घड़ा बड़ा होता है जिसका उपयोग प्रजनन काल में स्वर-अनुनादक के रूप में और समागम के लिए होता है। घड़ियाल का थूथना पतला और लम्बा होता है। वयस्क घड़ियाल अपने शरीर के तापमान नियंत्रण के लिए नदी किनारे अथवा नदी के बीच टापूओं पर धूप सेंकते हैं। इनका मुख्य आहार मछली है।

उदभव : करोडों वर्ष पूर्व जब गर्भरक्तधारी पक्षियों तथा स्तनपायी जंतुओं का प्रादुभार्व नहीं हुआ था।

विस्तार : भारत के सिन्धु, गंगा, ब्रहमपुत्रऔर महानदी तथा इनकी सहायक नदियों में तथा म्यामांर के इरावदी तथा अराकान नदियों में।

हिन्दी नाम : घड़ियाल

अंग्रेजी नाम : Gharial

वैज्ञानिक नाम : Gavialis gangeticus

आकार : लम्बाई 6.75 मी0 तक

वजन : 150 किलोग्राम

चिडियाघर में आहार:जिन्दा मछली

प्रजनन काल : दिसम्बर-जनवरी
इंक्युबेशबन अवधि : 72-92 घंटा, 30-40 सेल्सियस तापमान पर

हैचलिंग : लम्बाई- 325-375 मि0मी0, वजन- 75-97 ग्राम
अण्डे की संख्या : कुछ से दर्जनों की संख्या में

जीवन काल : करीब 100 वर्ष

प्राकृतिक कार्य : प्रजनन द्वारा अपनी प्रजाति का अस्तित्व कायम रखना, मछलियों की संख्या नियंत्रित करना तथा नदियों की उत्पादकता बनाए रखना आदि।
प्रकृति में संरक्षण स्थिति : संकटापन्न (Endangered);
कारण : अविवेकपूर्ण मानवीय गतिविधियों (यथा नदियों में अत्यधिक घुसपैठ तथा विदोहन) के कारण इनके प्राकृतवास (Habitat) का सिमटना एवं उसमें गुणात्मक ह्रास (यथा आहार, जल एवं शांत आश्रय-स्थल कि कमी होना), चमड़ा के लिए शिकार तथा मानव-हित से टकराव (यथा जान-माल की क्षति आदि) के कारण हत्या.
वैधानिक संरक्षण दर्जा : अति संरक्षित, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची - १ में शामिल.

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Arvind Mishra ने कहा…

अच्छी रिपोर्ट !

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