
आहत एवं दुःखी मन से अशान्त मस्तिष्क की अकुलाहट व्यक्त कर रहा हूँ कि जिस बर्बरता से वन्य जीवों की हत्या हो रही है, हमारी सोंच एवं लिप्सा कितनी प्रखर हो गयी है. अपनी सम्पन्नता एवं घमंड में हम इतने मह्त्वाकांक्षी हो गये हैं कि निरीह वन्य जीवों की हत्या अपनी लिप्सा एवं वैभवशाली जीवन में थोड़ी खलल पड़ने पर कर दे रहे हैं. जैव व्यवस्था में शीर्ष पर विराजमान हम महत्वाकांक्षी एवं घमंडी मानव जहाँ अपने संतानो की वृद्धि एवं सुख-सुविधा के औजार इक्ट्ठा करने में कहीं भी थोड़ी चूक नहीं होने देना चाहते हैं वहीं, वन्य जीवों के अस्तीत्व पर हीं खतरा बन बैठे हैं. वन्य प्राणियों के प्राकृतवास का नाश कर अपने सौन्दर्य प्रसाधनों की पूर्ति कर रहे हैं और जब वे अपने जीवन की गाड़ी को खिंचने के लिए पापी पेट की क्षुद्दा शांत करने के लिए फसलों की तरफ बढ़ते हैं तो उन्हें जहर देकर मौत की नींद सुला दिया जा रहा है. मानव से वन्य-जीवों का द्वन्द भौतिकवादी जीवनशैली का विभत्स स्वरुप है. एक तरफ वनों में भोजन की कमी होने की वजह से गजराज अपनी भूख को शांत करने के प्रयास में फसल को नुकसान पहुँचा देते हैं वहीं, इस विकसित मष्तिष्क का जानवर अपने अहंकारी प्रवृति के चलते इसे अपने साम्राज्य पर आक्रमण समझ कर बदले की कारवाई करता है और गजराज को मौत मिलती है क्योंकि इस जैव व्यवस्था में सिर्फ हमें हीं मौत देने का अधिकार जो प्राप्त है.
तोरपा की घटना में जिस हाथी को ज़हर देकर मारा गया उसके पीछे कहीं न कहीं अहंकारी मानव की विकृत मानसिकता प्रखर हुई एवं फसल खाने की वजह से जान से हाथ धोना पड़ा. आज ग्रामीण गजराज की मौत पर धार्मिक महत्व होने की वजह से पूजा-अर्चना कर प्रायश्चित कर रहे हैं एवं उनकी मौत पर आँसू बहाकर दोषियों को ‘पापी’ जैसे गालियो से नवाज़ रहें हैं जो हम जंगल के प्रभारियों के लिए टिमटिमाते तारे की धीमी रोशनी के समान है. हमे भी ग्रामीणों के अधिसंख्यक वर्ग के बीच की धीमी रोशनी को अँगारे में बदलने की जरुरत है क्योंकि यहाँ जिसने हाथी को मारा गया है उनका न तो दाँत किसी ने निकाला, न तो कोई अन्य अंग गायब किया है.
अतः यह घटना अशिक्षित समाज की विकृत एवं किसी सिरफिरे की हिमाकत है जिसपर अंकुश लगाने की वन्य प्राणी (संरक्षण) अधिनियम में प्रावधान है. सामाजिक व्यवस्था भी हमारे विरुद्ध नहीं है तथा सम्बंधित वन प्रमंडल पदाधिकारी श्री मानेल टूडू भी सुलझे व्यक्तित्व के पदाधिकारी है एवं उनके पास वन्य प्राणियों के बीच काम करने का अच्छा अनुभव भी है. वे अपने अधीनस्थो को चुस्त-दुरूस्त कर वहाँ के परिवेश को बदल सकते हैं.
दूसरी घटना चाईबासा के कुमारडुबी के बाईहातू की है जहाँ शिकारियों ने एक हाथी को गोली मार दी एवं उसके दाँत व नाखून को गायब कर दिया. यह् घटना पूरी तरह से अपराधिक है एवं इसमें अंतरराजीय अपराधियों अथवा उग्रवादियों का हाथ हो सकता है. ज्ञात हो कि उक्त घटना झारखण्ड एवं उड़ीसा के सीमा पर घटित हुई है जो उग्रवादियों का गढ़ हो गया है. यह् पूरी तरह से धनोपार्यजन एवं तस्करी के लिए की गई हत्या है. इससे निपटने के लिए कठोर प्रशासनिक कारवाई ही एक मात्र साधन है.
मैं पाठक मित्रों से अनुरोध करुँगा कि अगर कोई संवेदना/विचार/सुझाव आपके मन में भी है तो आप मुझ तक पहुँचाएँ, मैं आपके विचारों को वन प्रशासन के पास पहुँचाने का माध्यम बनूँगा.
5 पाठक टिप्पणी के लिए यहाँ क्लिक किया, आप करेंगे?:
वन्य प्राणियों के संग यह व्यवहार दुर्भाग्यपूर्ण है. यह शासन एवं हम लोगों की नैतिक जिम्मेदारी है कि इन मूक प्राणियों की रक्षा करें और चंद रुपयों की लालच में इनका संहार करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही की जाये.
दिल को दुखा गयी ये खबर.....वन्य प्राणियों की ऐसी हालत करने वाले मनुष्य नहीं , पशु से भी गए गुजरे माने जा सकते हें....
कठोर प्रशासनिक कार्रवाई ही एक मात्र साधन है - मन में तो यही आता है कि ऐसा करनेवाले के भी सीधे गोली मार देनी चाहिए, पर मेरे विचार से यह अंतिम विकल्प होना चाहिए।
वन-विभाग के अधिकारियों को समय-समय पर वन-वासियों और वनों के आसपास रहनेवाले व्यक्तियों के साथ जागरूकता-सभा का आयोजन करना चाहिए।
सभाएँ नियमित रूप से होंगी, तो बेहतर परिणाम सामने आएँगे।
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