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मंगलवार, 27 जनवरी 2009

जीवन की गाड़ी खिंचने में गजराज की जान गयी

रात में इस सूचना से अचम्भित था कि चाईबासा में शिकारियों ने गोली मारकर एक हाथी की हत्या कर उसके दाँत एवं नाखून की चोरी कर ली जबकि सुबह पता चला कि तोरपा में एक हाथी को जहर देकर मार दिया गया. इन दोनों घटना से आज मैं अपने आप को बहुत कमजोर मह्सूस कर रहा हूँ क्योंकि इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकता.
आहत एवं दुःखी मन से अशान्त मस्तिष्क की अकुलाहट व्यक्त कर रहा हूँ कि जिस बर्बरता से वन्य जीवों की हत्या हो रही है, हमारी सोंच एवं लिप्सा कितनी प्रखर हो गयी है. अपनी सम्पन्नता एवं घमंड में हम इतने मह्त्वाकांक्षी हो गये हैं कि निरीह वन्य जीवों की हत्या अपनी लिप्सा एवं वैभवशाली जीवन में थोड़ी खलल पड़ने पर कर दे रहे हैं. जैव व्यवस्था में शीर्ष पर विराजमान हम महत्वाकांक्षी एवं घमंडी मानव जहाँ अपने संतानो की वृद्धि एवं सुख-सुविधा के औजार इक्ट्ठा करने में कहीं भी थोड़ी चूक नहीं होने देना चाहते हैं वहीं, वन्य जीवों के अस्तीत्व पर हीं खतरा बन बैठे हैं. वन्य प्राणियों के प्राकृतवास का नाश कर अपने सौन्दर्य प्रसाधनों की पूर्ति कर रहे हैं और जब वे अपने जीवन की गाड़ी को खिंचने के लिए पापी पेट की क्षुद्दा शांत करने के लिए फसलों की तरफ बढ़ते हैं तो उन्हें जहर देकर मौत की नींद सुला दिया जा रहा है. मानव से वन्य-जीवों का द्वन्द भौतिकवादी जीवनशैली का विभत्स स्वरुप है. एक तरफ वनों में भोजन की कमी होने की वजह से गजराज अपनी भूख को शांत करने के प्रयास में फसल को नुकसान पहुँचा देते हैं वहीं, इस विकसित मष्तिष्क का जानवर अपने अहंकारी प्रवृति के चलते इसे अपने साम्राज्य पर आक्रमण समझ कर बदले की कारवाई करता है और गजराज को मौत मिलती है क्योंकि इस जैव व्यवस्था में सिर्फ हमें हीं मौत देने का अधिकार जो प्राप्त है.
तोरपा की घटना में जिस हाथी को ज़हर देकर मारा गया उसके पीछे कहीं न कहीं अहंकारी मानव की विकृत मानसिकता प्रखर हुई एवं फसल खाने की वजह से जान से हाथ धोना पड़ा. आज ग्रामीण गजराज की मौत पर धार्मिक महत्व होने की वजह से पूजा-अर्चना कर प्रायश्चित कर रहे हैं एवं उनकी मौत पर आँसू बहाकर दोषियों को ‘पापी’ जैसे गालियो से नवाज़ रहें हैं जो हम जंगल के प्रभारियों के लिए टिमटिमाते तारे की धीमी रोशनी के समान है. हमे भी ग्रामीणों के अधिसंख्यक वर्ग के बीच की धीमी रोशनी को अँगारे में बदलने की जरुरत है क्योंकि यहाँ जिसने हाथी को मारा गया है उनका न तो दाँत किसी ने निकाला, न तो कोई अन्य अंग गायब किया है.
अतः यह घटना अशिक्षित समाज की विकृत एवं किसी सिरफिरे की हिमाकत है जिसपर अंकुश लगाने की वन्य प्राणी (संरक्षण) अधिनियम में प्रावधान है. सामाजिक व्यवस्था भी हमारे विरुद्ध नहीं है तथा सम्बंधित वन प्रमंडल पदाधिकारी श्री मानेल टूडू भी सुलझे व्यक्तित्व के पदाधिकारी है एवं उनके पास वन्य प्राणियों के बीच काम करने का अच्छा अनुभव भी है. वे अपने अधीनस्थो को चुस्त-दुरूस्त कर वहाँ के परिवेश को बदल सकते हैं.
दूसरी घटना चाईबासा के कुमारडुबी के बाईहातू की है जहाँ शिकारियों ने एक हाथी को गोली मार दी एवं उसके दाँत व नाखून को गायब कर दिया. यह् घटना पूरी तरह से अपराधिक है एवं इसमें अंतरराजीय अपराधियों अथवा उग्रवादियों का हाथ हो सकता है. ज्ञात हो कि उक्त घटना झारखण्ड एवं उड़ीसा के सीमा पर घटित हुई है जो उग्रवादियों का गढ़ हो गया है. यह् पूरी तरह से धनोपार्यजन एवं तस्करी के लिए की गई हत्या है. इससे निपटने के लिए कठोर प्रशासनिक कारवाई ही एक मात्र साधन है.
मैं पाठक मित्रों से अनुरोध करुँगा कि अगर कोई संवेदना/विचार/सुझाव आपके मन में भी है तो आप मुझ तक पहुँचाएँ, मैं आपके विचारों को वन प्रशासन के पास पहुँचाने का माध्यम बनूँगा.

सोमवार, 19 जनवरी 2009

समागम पूर्व एक से तीन सप्ताह तक लगातार सहवास होता है, बाघो में

नाम : भारतीय बाघ, रॉयल बंगाल टाइगर
वैज्ञानिक नाम : Panthera tigris tigris
उदभव : बाघ एक एशियाई जानवर है जिसका मूलवास मध्य एवं उत्तरी एशिया रहा है. उत्तरी साइबेरिया में जहाँ अब बाघ नहीं मिलते वहाँ उत्खन्न में दस लाख वर्ष पूर्व के हिमानी काल का बाघ-स्वरुप जानवर का अस्थि-अवशेष मिला है. बाघ की कुल आठ उप-प्रजातियों में से कैस्पियन बाघ (Panthera tigris altaica), जावा बाघ (Panthera tigris sondaica) तथा बाली बाघ (Panthera tigris balica) विलूप्प्त हो चुके हैं और अन्य उप-प्रजातियाँ भी विलुप्त होने के कगार पर है. श्रीलंका में बाघ नहीं पाए जाते हैं.
सामान्य विवरण : बाघ बिल्ली प्रजाति के जानवरों में सबसे बड़े आकार का है. ये रात में २० किलोमीटर चल सकता है तथा एक बार में १० मीटर छलांग लगा सकता है. ये शिकार को देखकर अथवा सुनकर अपना आहार ढूँढते है और समीप जाकर आक्रमण करते हैं. इनकी तीन शाश्वत आवश्यकताऐं होती हैं - आहार के लिए समुचित संख्या में जानवर, समुचित जल एवं शांत और सुरक्षित विश्रामस्थली. आमतौर पर एक नर बाघ का क्षेत्राधिकार ३०-३५ वर्ग कि०मी० होता है जिसमे ३-६ मादा के क्षेत्राधिकार के अंश सम्मिलित रहते हैं. एक मादा बाघ का क्षेत्राधिकार २३-२५ वर्ग कि०मी० होता है. ये अपने क्षेत्राधिकार में समलिंगी बाघ का प्रवेश रोकते हैं.
विचित्रता : यह देखा गया है कि खाने के दौरान कई बार पानी पीता है और यही कारण है कि वह आपना शिकार जल-श्रोत के समीप खींच कर ले जाता है और वहीँ छिप कर खाता है. यदि शिकार का खाद्य अंश बच जाता है तो अन्य परभक्षियों से बचाने के लिए वह इसे छिपा देता है और फ़िर अगले दिन खाता है. सात-आठ दिन में एक शिकार एक बाघ के लिए काफी है. भूख नहीं हो तो बेमतलब शिकार नहीं करता है. वैसे भूखा बाघ किसी प्रकार का माँस खा सकता है.
समागम वर्ष में कभी भी हो सकता है और समागम पूर्व एक से तीन सप्ताह तक नर-मादा का सहवास होता है. जन्में शावक का वजन ८००-१५०० ग्राम तक होता है. शावकों की आँखें जन्म से सातवें और चौदहवें दिन के बीच खुलती है. दूध-दाँत करीब दो सप्ताह बाद निकलते हैं. दो माह तक शावक माता बाघ के साथ मांद में हीं रहते हैं. करीब ११ महीने की उम्र में माता शावकों को शिकार पर अपने साथ ले जाती है और ५-६ महीने में वे स्वतंत्र रूप से शिकार करने योग्य हो जाते हैं. आमतौर पर शावक माता के साथ २-३ वर्ष तक रहते हैं और नर शावक अपनी माता से पहले अलग होता है.
आकार : नर- २.७५-२.९० मी० लम्बा, मादा- करीब २.६५ मी० (पुँछ सहीत)
वजन : १८०-२३० किलोग्राम, मादा- करीब १६५ किलोग्राम
चिडियाघर में आहार : महिष माँस, चिकेन एवं दूध
प्रजनन काल : पूरा वर्ष
प्रजनन हेतू परिपक्वता : तीन से चार वर्ष
गर्भकाल : ९५ से ११२ दिन
प्रतिगर्भ प्रजनित शिशु की संख्या : दो से चार
जीवन काल : करीब २० वर्ष प्राकृतवास में, १६-१७ वर्ष बंदी अवस्था में
प्राकृति कार्य : प्रजनन द्वारा अपनी प्रजाति का अस्तित्व कायम रखना, शाकभक्षी जानवरों की संख्या नियंत्रित कर वनस्पति एवं शाकाहारी जानवरों के बीच संतुलन बनाये रखना आदि.
प्रकृति में संरक्षण स्थिति : संकटापन्न (Endangered); कारण : अविवेकपूर्ण मानवीय गतिविधियों (यथा वनों की अत्यधिक कटाई, चराई, वनभूमि का अन्य प्रयोजन हेतु उपयोग) के कारण इनके प्राकृतवास (Habitat) का सिमटना एवं उसमें गुणात्मक ह्रास (यथा आहार,जल एवं शांत आश्रय-स्थल कि कमी होना), शारीरिक अवयवों (यथा चमड़ा, हड्डी, नाखून आदि) के लिए तथा मानव-हित से टकराव (यथा मवेशियों को क्षति आदि) के कारण हत्या.
वैधानिक संरक्षण दर्जा : अति संरक्षित, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची - १ में शामिल.
झारखण्ड की परिस्थिति : झारखण्ड के लातेहार जिला स्थित पलामू टाईगर रिजर्भ राज्य का एकमात्र टाईगर रिजर्भ है. इस प्रोजेक्ट के अनुकूल परिणाम निकले हैं, परन्तु कुछ खामियाँ भी उजागर हुई हैं, जैसे बाघ के प्राकृतवासों की सानिहयता और नए क्षेत्रों में जाने के लिए कॉरिडोर पर विशेष ध्यान नहीं रखना, समीपस्थ मानव-आवादी से द्वंद, अवैध शिकार और व्यापार रोकने तथा संरक्षण हेतु जन-जागरूकता बढाने में प्रत्याशित सफलता नहीं मिलना आदि. अब इन खामियों को दूर करने का प्रयास भी जारी है.

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