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बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

बन्द करो ये पुरस्कार : ट्रिपल खस्सी प्रतियोगिता!


राँची के नामकुम में आयोजित ट्रिपल खस्सी प्रतियोगिता ग्रीन गार्डन क्लब ने बेरियस बेक क्लब को 3-2 से हराकर जीत ली। इस प्रतियोगिता में 28 टीमें खेलीं। प्रतियोगिता का इतिहास 37 वर्षो का रहा है। ये एक फुटबॉल प्रतियोगिता है जिसका आयोजन शहर के नजदीक हुआ। ऐसी प्रतियोगिता देहाती एवं वन आच्छादित क्षेत्रो में देखने को मिलते थे। मेरी समझ से इस तरह के पुरस्कार उन दिनों की याद दिलाती है जब लोगो के पास मुद्रा की कमी रही होगी एवं पशुधन की उपलब्धता थी। तब गाँव के प्रधानों ने अपने खिलाड़ियों को प्रोत्तसाहित करने के लिए अपने घर के पालतु पशु को उपहार स्वरुप भेंट दिया होगा।
लेकिन आज के परिपेक्ष में जब आम लोग पहले से ज्यादा शिक्षित एवं आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत सबल हैं, तब इस तरह से पशुओं के प्रति व्यवहार एवं फुटबॉल प्रतियोगिता में डबल खस्सी प्रतियोगिता/ ट्रिपल खस्सी प्रतियोगिता का आयोजन कहाँ तक व्यवहारिक है। जिस प्रतियोगिता के आयोजन में हीं खून की बू आ रही हो, वह समाज एवं खेल को कौन मुकाम मिलेगा, ये समय बतलाऐगा। मैं सिर्फ यही कहूँगा कि इस खस्सी प्रतियोगिता से न तो फुटबॉल का विकास होगा और न तो खिलाड़ियो का। ये सिफ खाओ-पिओ मस्त रहो की उक्ति को चरितार्थ करता है। जबकि दूसरी तरफ समाज में पालतु पशुओं के प्रति घृणित व्यहार का समाजीकरण करने का अघोषित प्रयास मात्र है जिसे अबिलम्ब बंद करने की आवश्यता है। ऐसा नहीं कि मैं एक शाकाहारी व्यक्ति हूँ जिसके चलते उक्त कृत मुझे नहीं भाता, लेकिन ज़रा सोचिए क्या एक शिक्षित समाज को खेल प्रतियोगिता के माध्यम से उक्त कृत शोभा देता है। अगर पुरस्कार हीं देना है तो उसका स्वरूप तो पूरे विश्व की खेल प्रतियोगिताओं में रोज दिखता है, फिर ये पाषाणयुगी क्रियाकलाप क्यों? इस तरह के पुरस्कार से खेलों का विकास होने से रहा, दूसरी तरफ नवनिहालों के बाल मन पर भी खेल के प्रति क्या अवधारणा बनेगी, जरा इसका भी विवेचना कीजिए। चुँकि मैं लम्बे समय तक खिलाड़ी के रूप में विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग ले चुका हूँ, इसलिए मुझे आज ये पुरस्कार कहीं चुभ रहा है। पुरस्कार को अब तो सामाचर पत्र भी महिमामंडित करने लगे हैं एवं फोटो के साथ सामाचार का प्रकाशन करने लगे हैं ,जो अशुभ संकेत है इन निरीह पशुओं के प्रति।

6 पाठक टिप्पणी के लिए यहाँ क्लिक किया, आप करेंगे?:

L.Goswami ने कहा…

शोचनीय दशा है ..क्या किया जाय ..कोई कानून भी तो नही है इस सन्दर्भ में.

संगीता पुरी ने कहा…

सहमत हूं आपसे !!

Arvind Mishra ने कहा…

इसे खस्सी प्रतियोगिता क्यों कहा जाता है इस पर तो अपने कुछ लिखा ही नहीं !

प्रेम सागर सिंह [Prem Sagar Singh] ने कहा…

अरविन्द मिश्राजी के जिज्ञासा को दूर करते हुए स्पष्ट करना चाहता हूँ कि फुटबॉल प्रतियोगिता के समाप्ति के उपरांत विजेता टीम को पुरस्कार स्वरूप खस्सी (नर बकरी, GOAT)दी जाती है, ताकि भोज (Dinner) में उसके माँस का प्रयोग हो सके। पुरस्कार स्वरूप एक, दो, या तीन खस्सी तक दिए जाने का प्रचलन रहा है।

विवेक रस्तोगी ने कहा…

ये तो वाकई पशु पर अत्याचार हो रहा है। मेनका गांधीजी को बुलाना पड़ेगा।

Paise Ka Gyan ने कहा…

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