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सोमवार, 19 जनवरी 2009

समागम पूर्व एक से तीन सप्ताह तक लगातार सहवास होता है, बाघो में

नाम : भारतीय बाघ, रॉयल बंगाल टाइगर
वैज्ञानिक नाम : Panthera tigris tigris
उदभव : बाघ एक एशियाई जानवर है जिसका मूलवास मध्य एवं उत्तरी एशिया रहा है. उत्तरी साइबेरिया में जहाँ अब बाघ नहीं मिलते वहाँ उत्खन्न में दस लाख वर्ष पूर्व के हिमानी काल का बाघ-स्वरुप जानवर का अस्थि-अवशेष मिला है. बाघ की कुल आठ उप-प्रजातियों में से कैस्पियन बाघ (Panthera tigris altaica), जावा बाघ (Panthera tigris sondaica) तथा बाली बाघ (Panthera tigris balica) विलूप्प्त हो चुके हैं और अन्य उप-प्रजातियाँ भी विलुप्त होने के कगार पर है. श्रीलंका में बाघ नहीं पाए जाते हैं.
सामान्य विवरण : बाघ बिल्ली प्रजाति के जानवरों में सबसे बड़े आकार का है. ये रात में २० किलोमीटर चल सकता है तथा एक बार में १० मीटर छलांग लगा सकता है. ये शिकार को देखकर अथवा सुनकर अपना आहार ढूँढते है और समीप जाकर आक्रमण करते हैं. इनकी तीन शाश्वत आवश्यकताऐं होती हैं - आहार के लिए समुचित संख्या में जानवर, समुचित जल एवं शांत और सुरक्षित विश्रामस्थली. आमतौर पर एक नर बाघ का क्षेत्राधिकार ३०-३५ वर्ग कि०मी० होता है जिसमे ३-६ मादा के क्षेत्राधिकार के अंश सम्मिलित रहते हैं. एक मादा बाघ का क्षेत्राधिकार २३-२५ वर्ग कि०मी० होता है. ये अपने क्षेत्राधिकार में समलिंगी बाघ का प्रवेश रोकते हैं.
विचित्रता : यह देखा गया है कि खाने के दौरान कई बार पानी पीता है और यही कारण है कि वह आपना शिकार जल-श्रोत के समीप खींच कर ले जाता है और वहीँ छिप कर खाता है. यदि शिकार का खाद्य अंश बच जाता है तो अन्य परभक्षियों से बचाने के लिए वह इसे छिपा देता है और फ़िर अगले दिन खाता है. सात-आठ दिन में एक शिकार एक बाघ के लिए काफी है. भूख नहीं हो तो बेमतलब शिकार नहीं करता है. वैसे भूखा बाघ किसी प्रकार का माँस खा सकता है.
समागम वर्ष में कभी भी हो सकता है और समागम पूर्व एक से तीन सप्ताह तक नर-मादा का सहवास होता है. जन्में शावक का वजन ८००-१५०० ग्राम तक होता है. शावकों की आँखें जन्म से सातवें और चौदहवें दिन के बीच खुलती है. दूध-दाँत करीब दो सप्ताह बाद निकलते हैं. दो माह तक शावक माता बाघ के साथ मांद में हीं रहते हैं. करीब ११ महीने की उम्र में माता शावकों को शिकार पर अपने साथ ले जाती है और ५-६ महीने में वे स्वतंत्र रूप से शिकार करने योग्य हो जाते हैं. आमतौर पर शावक माता के साथ २-३ वर्ष तक रहते हैं और नर शावक अपनी माता से पहले अलग होता है.
आकार : नर- २.७५-२.९० मी० लम्बा, मादा- करीब २.६५ मी० (पुँछ सहीत)
वजन : १८०-२३० किलोग्राम, मादा- करीब १६५ किलोग्राम
चिडियाघर में आहार : महिष माँस, चिकेन एवं दूध
प्रजनन काल : पूरा वर्ष
प्रजनन हेतू परिपक्वता : तीन से चार वर्ष
गर्भकाल : ९५ से ११२ दिन
प्रतिगर्भ प्रजनित शिशु की संख्या : दो से चार
जीवन काल : करीब २० वर्ष प्राकृतवास में, १६-१७ वर्ष बंदी अवस्था में
प्राकृति कार्य : प्रजनन द्वारा अपनी प्रजाति का अस्तित्व कायम रखना, शाकभक्षी जानवरों की संख्या नियंत्रित कर वनस्पति एवं शाकाहारी जानवरों के बीच संतुलन बनाये रखना आदि.
प्रकृति में संरक्षण स्थिति : संकटापन्न (Endangered); कारण : अविवेकपूर्ण मानवीय गतिविधियों (यथा वनों की अत्यधिक कटाई, चराई, वनभूमि का अन्य प्रयोजन हेतु उपयोग) के कारण इनके प्राकृतवास (Habitat) का सिमटना एवं उसमें गुणात्मक ह्रास (यथा आहार,जल एवं शांत आश्रय-स्थल कि कमी होना), शारीरिक अवयवों (यथा चमड़ा, हड्डी, नाखून आदि) के लिए तथा मानव-हित से टकराव (यथा मवेशियों को क्षति आदि) के कारण हत्या.
वैधानिक संरक्षण दर्जा : अति संरक्षित, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची - १ में शामिल.
झारखण्ड की परिस्थिति : झारखण्ड के लातेहार जिला स्थित पलामू टाईगर रिजर्भ राज्य का एकमात्र टाईगर रिजर्भ है. इस प्रोजेक्ट के अनुकूल परिणाम निकले हैं, परन्तु कुछ खामियाँ भी उजागर हुई हैं, जैसे बाघ के प्राकृतवासों की सानिहयता और नए क्षेत्रों में जाने के लिए कॉरिडोर पर विशेष ध्यान नहीं रखना, समीपस्थ मानव-आवादी से द्वंद, अवैध शिकार और व्यापार रोकने तथा संरक्षण हेतु जन-जागरूकता बढाने में प्रत्याशित सफलता नहीं मिलना आदि. अब इन खामियों को दूर करने का प्रयास भी जारी है.

16 पाठक टिप्पणी के लिए यहाँ क्लिक किया, आप करेंगे?:

Unknown ने कहा…

आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं

बेनामी ने कहा…

इतनी अच्छी जानकारी के लिए शुक्रिया उम्मीद है आगे भी अच्छी चीजें पढने को मिलती रहेंगी

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

बहुत अच्छी शुरूआत है! मुझे भी वन्य प्राणियों से बहुत लगाव है! आपकी कलम सबके मन में इनके प्रति प्यार भर दे! बधाई और शुभकामनाएँ!

Publisher ने कहा…

बहुत अच्छा! सुंदर लेखन के साथ चिट्ठों की दुनिया में स्वागत है। चिट्ठाजगत से जुडऩे के बाद मैंने खुद को हमेशा खुद को जिज्ञासु पाया। चिट्ठा के उन दोस्तों से मिलने की तलब, जो अपने लेखन से रू-ब-रू होने का मौका दे रहे है का एहसास हुआ। आप भी इस विशाल सागर शब्दों के खूब गोते लगाएं। मिलते रहेंगे। शुभकामनाएं।

Publisher ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अभिषेक मिश्र ने कहा…

Mahatwapurn jaankari ke liye dhanyawad. Swagat.

प्रकाश गोविंद ने कहा…

इस तरह की जानकारियाँ
अत्यन्त रोचक होती हैं !

अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर !

अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा !

मेरी शुभकामनाएं

Hima Agarwal ने कहा…

वन्‍य प्रेमियों के लिए बेहतरीन ब्‍लाग शुरू करने के लिए धन्‍यवाद। आशा है आपसे वन्‍य जीवों से संबंधित जानकारियां मिलती रहेंगी। यदि साथ ही ये जानकारी भी हो कि अमुक प्रजाति/वन्‍य जीव की संख्‍या कितनी बची है और क्‍यों तो एक पुण्‍य कर्म भी होगा। हांलाकि आपने झारखंड के परिपेक्ष्‍य में ये आंशिक जानकारी दी है।

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत अच्छी रोचक जानाकरी दी है आपने .ऐसे ही रोचक लेख और लिखते रहे ..शुक्रिया

Prakash Badal ने कहा…

चित्र तो दिखाई दे रहे हैं लेकिन दिखाई कुछ नहीं दे रहा। हो सकता है कोई तकनीकी ख़राबी हो। बहरहाल आपका स्वागत है।

अनिल कान्त ने कहा…

आपका और आपके इस चिट्ठे का स्वागत है

Akanksha Yadav ने कहा…

very nice blog.

60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!

बेनामी ने कहा…

आपका वेबसाइट अछा लगा
कृपया इसे जायदा मजेदार बनाए इसे वन्य प्राणी के तस्वीर से सजाएँ
आपका
अजित

Ashok Vishawakarma ने कहा…

This action to save the wild life is really good we should work together to save them.

Paise Ka Gyan ने कहा…

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Geek Info ने कहा…

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